Want to write a song/ गीत लिखना चाहता हूँ
By Dr. Pushpa Satyasheil
I want to write such a song
whose every word smells of flowers
Whose paragraphs give new messages everyday like roses
Who are always shy like Plumeria/Champa
and like buds
that swing in the hope of some unseen happiness
hum like bumblebees
And whose decoration is the feelings of my mind!!
I want to write such a song
whose every word inspires me
To always engage in good deeds and which Ikeep blooming like flowers
who does not let my soul sleep but keeps me awake
And who has the ability to hold my tears in itself!!
I want to write a song
Whose writing pen is not dipped in ink
But in pain of the heart and in the stream of tears
Which itself insists again and again to write songs
whichcaptures the images of that nudity barbarism and bestiality
Which has got absorbed in our society today from some unknown place!!
i want to write such a song
which echoes in the ten directions and
Hearing its sound,even thosewake up
who till date have kept the doors of their hearts closed
whose spirit is crushed whose mind is captive
who are destroying themselveswith their own hands and
Those who are deceiving themselves by deceiving others!!
I want to write such a song thatmake noise of creation in the masses
Call out to the people across the country-
get up, get up, do something, don’t be lazy get up and see
What a beautiful morning it is – listen to its hum
Listen to the chirping of the birds and watch the world
Make it even more beautiful with your good deeds!!
मैं एक ऐसा गीत लिखना चाहता हूँ
जिसके एक एक शब्द से फूलों की सुगंध आती हो
जिसके पद गुलाब की तरह नित नवीन संदेश देते हों
जो सदा चंपे की तरह लजाते हों और कलियों की तरह
किसी अनदेखे सुख की आशा में झूलते हों
भौरों की तरह गुंजार करते हों
और जिनका शृंगार मेरे मन के भाव हों !!
मैं एक ऐसा गीत लिखना चाहता हूँ
कि जिसका एक एक शब्द मुझे प्रेरणा प्रदान करता हो
सदा सत्कार्यों में संलग्न रहने की और जो मुझे
फूलों के समान हँसाता रहे खिलाता रहे
जो मेरी आत्मा को सोने न दे वरन जगाता रहे
और जो मेरे आंसुओं को अपने में समाने की क्षमता रखता हो !!
मैं एक ऐसा गीत लिखना चाहता हूँ कि
जिसको लिखने वाली कलम स्याही में नहीं
उर की वेदनाओं में और आंसुओं की धारा में डुबोई गई हो
जो स्वयं ही बार बार मचल उठती हो गीत लिखने के लिए
कि जो उस नग्नता बर्बरता और पाशविकता के चित्र खींचे
जो कि आज हमारे समाज में न जाने कहाँ से आकर समां गए हैं !!
मैं एक ऐसा गीत लिखना चाहता हूँ
जो दसों दिशाओं में गूंज उठे और
जिसकी ध्वनि सुन कर वे भी जाग उठें
जोकि आज तक अपने हृदय का द्वार बंद किए बैठे हैं
जिनकी आत्मा कुचली गई है जिनका मन बंदी हो गया है
जो अपने ही हाथों विनाश कर रहे हैं और
जो कि दूसरों को धोखा देकर स्वयं को धोखा दे रहे हैं !!
मैं एक ऐसा गीत लिखना चाहता हूँ जोकि
जन जन में सृजन का शोर मचा दे
देश भर के प्राणियों को पुकार कर कहे
उठो उठो कुछ करो यूँ अलसाए मत पड़े रहो उठो-देखो
आज कैसा सुंदर भोर है- इसकी गुनगुनाहट को सुनो
पक्षियों की चहचहाहट को सुनो और इस जगत को
अपने सत्कार्यों से और भी सुंदर बनाओ !!